नफरत का जमाना आया, प्रेम का माहौल गया,
विश्वास ने संग छोड़ा, आखिर कैसा ज़माना आया?
कठोर शब्दों ने दिल तोड़ा, काफिरों ने मज़ाक उड़ाया,
स्वार्थ ने लोगों को ऐसा घेरा, कि गुजरते पलों को भी तड़पाया।
अँधेरा आँखों पे ऐसा छाया, दिलने सुकून गँवाया,
मतलब का तो समां छाया, प्रेम ने तो दम ही तोड़ा।
रुख़सत तकल्लुफ को किया, हुकूमत को तो लाद दिया,
इस इल्ज़ाम में तो कितने बेकसूर को सज़ा दिया।
वक्त वक्त का खेल है, युग परिवर्तन का ये प्रमाण है,
जीवन में चैन आया, आखिर ज़माना ही तो बदल गया।
- डॉ. हीरा