तुझे पाऊँ या ना पाऊँ, उसकी फिक्र नहीं रही,
तुझे चाहूँ, यही ही तमन्ना रहती है।
तुझसे बातें करुँ या ना करुँ, ये आरजु नहीं,
बस तेरे प्रेम में ही सदैव रहूँ, यह ही आरजू रहती है।
कोई इस हाल को समझे या ना समझे, उसकी परवाह नहीं,
बस तेरे नशे में अपने आप को भुला दूँ यही फिक्र होती है।
मैं रहूँ या ना रहूँ, उसका भय नहीं रहा,
बस प्रेम में खुद को फना करने की तैयारी रखी है।
तेरा प्रेम मिले या ना मिले, उसकी सोच भी नहीं है,
बस इस अमर प्रेम में डूबे रहना, यही तो सच्चाई सामने आती है।
- डॉ. हीरा