तेरे ही खयालों में तुझे याद करुँ, और खुद को भूल जऊँ,
तेरे ही दर पर आकर, तुझे पा जाऊँ और तुझ में समा जाऊँ,
यह एक हकिकत है यह एक फरमाइश है।
तेरे ही भावों में अपने से मुलाकात कर पाऊँ,
तेरे ही दुनिया में तुझे हर जगह देख पाऊँ,
यही तो मंजिल है और यह ही तो तुझे पाने का मुकाम है।
तेरे ही आनंद में हर समा का आनंद ले लूँ,
तेरे ही स्वीकार में हर चीज़ स्वीकार हो मुझे,
ऐसा समर्पण चाहूँ, ऐसा एकरूपता चाहूँ।
- डॉ. हीरा