मुहब्बत में जीने की तमन्ना छूट जाती है,
यार की सोच में हम तो डूब जाते हैं।
दीवानगी की महफिल सज जाती है,
कि गुन्हा पे गुन्हा ये दिल करता जाता है।
तस्वीर उसकी सामने आजाती है,
चाहतों का भी बलिदान हो जाता है।
पैगाम उस परवरदीगार का मानते हैं,
कि मुहब्बत के जाम पिलाता जाता है।
खामोशी में भी शोर लगता है,
उम्मीदो में हर खाहिश दफन होती है,
जुनून दिल पे ये छा जाते है,
कि होश अपने छूट जाते है।
प्रेम प्रभु का या भक्ति बंदे की, समझ नहीं आता है,
मुश्किले कुरबान होती हैं, खुद ही कुरबान होते हैं।
जीवन की राह पर महफिल सजती है,
कि खुलेआम खुद को खुदा में पाते है
जन्नत का दीदार होता है, मुहब्बत का जाम होता है।
- डॉ. हीरा