कोई रूक्सत नहीं, कोई शिकवा नहीं,
मिलन की आस है, कोई बलिदान नहीं।
कोई आरजू नहीं, कोई गिला नहीं,
मुहब्बत में जीना है, पाने की कोई तमन्ना नहीं।
ऊँची मंजिलो पे न निशान है, कोई इन्तहां नहीं,
अपने आपको भुलाना है, खुद की पहचान ही नहीं।
जुदाई का अहसास ही नहीं, फिर कुछ बाकी नहीं,
अपना होश ही नहीं, होश में कुछ कहना बाकी नहीं।
उसकी इबादत ही सही, और कोई बंदगी नहीं,
दिल बेकाबू सही, दिल में और कोई फरमाइश नहीं।
- डॉ. हीरा