अंजान राहों पे निकल पडे, अंजान अपने आप से रहे
इतनी माया में खो गये, कि प्रभु को भूल गये।
खुशी और गम सताते रहे, सुकून और चैन खो गए,
सूरतों में इतना खो गये, कि जीवन का रहस्य भूल गये।
मन से बूढे हो गये, जीवन जीना भूल गये,
अकेलेपन से डर गये, अपने आप से मिलना भूल गये ।
- डॉ. हीरा