खुदाने भी न जाने क्या लिखा है,
बस उसके कहने पर आरजू का दामन पक़डा है।
खुदा भी न जाने क्यों खोया है,
बस उसके प्यार के सहारे गमे शोक दिल से मिटा है।
खुदाने भी न जाने क्या हासिल किया है,
अपने आप में मुस्कुराना सीखा है।
खुदा भी न जाने इस महफिल का राज क्या है,
बस दिलो-जान महफिल में उसका बसेरा है।
खुदाने भी न जाने क्या पाया है,
इस जहान में उसका वजूद पाया है।
- डॉ. हीरा