जहाँ कोई नहीं था मेरा, वहाँ सब मेरे हो गए।
जहाँ कोई नहीं था अपना, वहाँ सब पराए अपने हो गए।
जहाँ इस दुनिया में कोई नहीं था इन्सान, वहाँ सब फरिश्ते बन गए।
जहाँ कोई नहीं था दीवाना, वहाँ सब प्रेम में दीवाने बन गए।
प्रेम ही एक तराजू है, जहाँ सब बेगाना बन जाते है।
प्रेम ही एक जवाब है, जहाँ सब संवारने लग जाते हैं।
प्रेम ही एक किताब है, जहाँ सब सँवारने लग जाते है।
वहाँ ना कोई देखा –देखी है, न कोई आरजू या तमन्ना है।
वहाँ सिर्फ एक जज़बा है, और खतम होने की तैयारी है।
प्रेम ही एक इलतिला है, जहाँ सिर्फ जीने-मरने से आज़ादी है।
- डॉ. हीरा