यूँ न हमे प्यार से देखा करो, कि हम फिसल न जाएँ।
कातिल ये निगाहें, हम न कहीं उसमें डूब जाएँ।
यूँ न हमें तुम बुलाया करो, न हम बहक जाएँ,
कि अंदाज ये जालिम, हम कहीं न खुद को भूल जाएँ।
यूँ न हमें तुम सताया करो, न हम कहीं रूठ जाएँ,
कि प्यार की ये अदा पे भी हम एक बार फिर डूब जाएँ।
यूँ न हमें तुम हमसे चुराया करो, न हम कहीं खो जाएँ,
कि तेरी मस्ती को दौर में, हम न कहीं बहक जाएँ।
यूँ न तुम हमें तड़पाया करो, न हम कहीं तरस जाएँ,
कि तेरी हँसी के खेल में हम तुझमें न शामिल हो जाएँ।
- डॉ. हीरा