जमाने से क्या लेना है हमें, जमाना किस काम का?
के आखिर अकेले जाना है हमें, ये महफिल किस काम की।
बरसते जज़्बात, गुजरते रिश्ते, इस दिवानगी का क्या,
कि आखिर वो एक दिन, सब छोड़ कर जाना, इन रिश्तों का क्या।
जीना प्रभु के लिए, जीते हम अपने लिए, वो नादानी हमारी,
कि फिर से एक मौका मिला, फिर बिछड़े, ये भूल है हमारी।
सच्ची मंजिल न पाई, सच्चाई को हमने है ठुकराया,
जीवन के इस दौर में हमने तुमसे क्या है पाया।
मंजिल हमारी हमे नहीं पता, कि जन्नत का ना है पता,
इसलिए खुदा, तेरे बंन्दे हम है, हर वक्त ख्याल यह रहता।
- डॉ. हीरा