उठना है इन कच्चे रिश्तों से ऊपर,
पहुँचना है हमें अपने झूठे बंधनों से ऊपर।
हमारी आशा और अपेक्षाओं से कहीं ऊपर,
निर्मल प्रेम में, इस जग से भी ऊपर।
ईश्वर के शरण में आके उठना है ऊपर,
मोह माया के जाल से, उसकी दुनिया से ऊपर।
कार्य कठिन है यारों, संभल के जाना ऊपर,
पैर न फिसले कहीं, तुम्हारे इस सफर में ऊपर।
वर्ना पहुँचोगे जरूर एक ना एक दिन ऊपर,
स्वर्ग में नहीं तो जहन्नूम में जाओगे, भूल के ईश्वर।
- डॉ. हीरा