तुझसे जो कहना चाहते है क्यों वो बात जुबान पे नहीं आती?
दिल की बात अपनी क्यों दिल में ही रह जाती?
डरते हैं हम कहीं जुबान कड़वी न बन जाऐ,
बोल के तुझे हम दुखी न कर जाएँ।
अपना असली रूप देखकर भी हम घबरा जाते,
कि हाले दिल हम अपना दबा के बस जाते।
तुझे अपना मान के भी हम अनजान रह जाते,
कि हाले दिल अपना हम बयान न कर पाते।
तोडो ये दूरी, ये दिल की कशिश, ऐ मेरे खुदा,
कि खुल कर सुनो, मेरे हाले दिल की अब तुम जुबान।
- डॉ. हीरा