तू तू न हो और मैं मैं न हूँ, तो कौन रहेगा?
यह जीवन व्यऱ्तन हो वरना कौन पाएगा?
गरीब हम न हो और अकेला तुम न रहो, यह कौन करेगा?
अंजाम आनंदमय हो और विश्वास जीवन भर हो, यह कौन समझायेगा?
दरवाजा बंद न हो और राही कम न हो, तो कोन हारेगा?
उमर कम न हो और कोशिश नाकामयाब न हो तो कौन लौटेगा?
दीवानगी मिटे नहीं और महफिल सजी रहे, तो कौन गम में होगा?
जीवन व्यतित न हो प्रेम की गलियों में हो तो कौन अंजान होगा?
दिदार तेरा हो और विश्वास मेरा हो तो कौन बदनाम होगा?
तेरा नाम न हो मेरा भी न हो तो कौन आखिर रहेगा?
- डॉ. हीरा