आज जो है, वह कल नहीं होगा,
कल जो था आज नहीं रहेगा।
यही तो है दुनिया का क्रम,
यही है ईश्वर का नियम.
बचपन गया जवानी भी जाऐगी।
जन्म के बाद, मृत्यु भी तो आऐगी,
फिर भी इन्सान पकड़ के बैठा है।
फिर भी इन्सान नासमझी के खेल में उलझा है,
आज जो है कल में बीत जाऐगा।
ये रिश्ते सब समय में भूल जाऐगा,
शरीर भी जब साथ छोड़ देगा।
तब ये मन का गुलाम राही बन जाऐगा,
मुलाकात अपने से फिर कर पाएगा।
- डॉ. हीरा