प्यासी नावडी, फिरत हम घेणु,
बावरी खाली, मन चित तुसी लागी।
अन्न, मन, तन तोरी, ध्यान धरी तोरी।
देन मेन तोरी संगत, कोहु नाही कोई सोहे।
जन्म मरण फेरे हम भूले, जात पात प्राँत सब धोये।
ज्ञान जब सबके टूटे, संग तोरा तो पाए।
सप्त रैप्ट जिन्हें खोए, मार्ग नानक का भूले।
रब दी महफिल जो जाने, रब दी सोच तो पाए।
रम, जप, तप फिकू लागे, जब नानक सो रंग लागे।
- डॉ. हीरा