चार दिन की चाँदनी, लो हो गई ख़तम ये जवानी।
मुश्किलें पड़ीं इस जहान में, आ गई फिर से उदासी।
खेल ख़तम, हो गई फिर से तन्हाई।
मिर्ज़ा गए द्वेष में, हो गए जीवन अँधेरे।
ये है माया के परींदे, ये हैं इस दुनिया के मेले।
हो गए ख़तम ये रिश्ते, मौत खड़ी है सामने।
दीया बुझते ही, है ख़त्म इस जहान के मेले।
पास रखो खुद को, तो खुद में ही हैं उजाले।
सब का वास्ता छोड़ो, पहचान करो पहले खुद की।
- डॉ. हीरा