निकले हम तेरी खोज में प्रभु, पर तू न मिला,
ढूँढा हम ने अपने अंदर तो तुझे ही पाया।
सोचा तू मेरे पास है प्रभु, तो तुझ को ही साथ पाया।
एक पल ऐसा लगा कि तू मुझमें है और मैं तुझमें ही हूँ।
फिर ख्याल आया कि ये एक पल के लिए ही क्यों?
तो समझ में आया कि पल पल से ही होती है शुरुआत।
और अंधकार में उजालों की किरण दिखाई दी,
उस किरण को देखकर इस राह पे निकल पड़े हम।
ठोकर भी लगी, और फूल भी मिले पर रुक न गए हम,
क्योंकि मंजिल थी सामने, और कुछ न देख सके हम।
- डॉ. हीरा