न करो बरबाद यूँ कुदरत को, मेरे मानवी,
कि रहता है खुदा का प्यार उसमें, रे मानवी।
फूलों की बहारों में बसती है प्रभु की हँसी,
न करो तुम उसकी तौहिन कि बनती है वो तेरे कबर की चुनरी।
पर्वतों की ये गुफाओं में रहते हैं संत कवि भी,
न तोड़ो तुम उनको कि वो रास्ता है तेरी मंजिल का।
पेड़ पहाड़ों में रहते हैं रस गुण अंजान भी,
न उखाड़ों इसे कि ये है जीवन तुम्हारे जीने का।
सागर के पवित्र जल में है घर प्रभु का,
न गंदा करो इसे के ये है दरबार उसी का।
- डॉ. हीरा