मुश्किल में तुझे याद करते हैं,
सुख में चैन से सो जाते हैं।
आराधना में विचलित हो जाते हैं,
कि अपने वजूद पे ही अटक जाते हैं।
गहराई में अपनी खो जाते हैं,
कि सम होके यूँ मिट जाते हैं।
तनहाई में आजाद हो जाते हैं,
तेरे दर पे आके खुद की पहचान भूल जाते हैं।
शायरी में तुझे बसा लेते हैं,
मौजूदगी को अपना पेशा बना लेते हैं।
तावीज़ को फिर निकाल देते हैं,
तेरी शरण में फिर से आ जाते हैं।
धुँधले बादल बिखर जाते हैं,
कि अंतर की यात्रा में पहुँच जाते है।
ज्ञान में संभाल जाते हैं,
तेरे इशारे पे चल पड़ते हैं।
ईश्वर तेरी आशिकी में मिट जाते हैं,
कहाँ जाना है वही भूल जाते हैं।
अस्तित्व सब मिट जाता हैं,
अनंत प्रकाश में आ जाते हैं।
अँधेरा दिल का ख़तम हो जाता है,
शून्यकार में ही तो बँध जाते हैं।
विराम में ही स्थान मिल जाता है,
जीवन की नैया वहीं डूब जाती है।
आकाश में परिंदा उड़ जाता है,
आखिर इस पिंजरे से आज़ाद हो जाता है।
- डॉ. हीरा