लातों के भूत बातों से नहीं मानते, कहावत तो ये सभी जानते,
पर सुनी बातें वो नहीं पहचानते, कब खुद पे गुजरी वो भी नहीं जानते।
ठोकर खा खा के भी वो नहीं सुधरते, हैरान-परेशान, फिर भी वो नहीं सुनते,
भगवान खुद को ही वो समझते, फिर भी दुखी कहानी सबको सुनाते।
हालत से ऊपर वो नहीं उठते, कोशिश कहाँ, वो तो सिर्फ सोते रहते,
दूसरों की चिंता वो तो हैं ज्यादा करते, सुझाव अपना वो तो यूँ बटोरते।
खुद को जो वो चतुर और विद्वान समझते, उपाय अपना ना खुद पे आज़माते,
भूल पे भूल वो तो किए जाते, दुखड़ा अपना जोर जोर से गाते।
खिलाता है गुल प्रभु भी उनको, सुधारते नहीं जब तक वो अपने रास्ते,
सही मार्ग पे वो जब तक है नहीं आते, तब तक बातों से ये भूत नहीं मानते।
- डॉ. हीरा