जान, ओ मेरी जान, कोमल कितनी तू है रे जान,
संभाल कर अपने आप को बैठी है कहाँ तू जान?
हिफाजत अपनी करती, अदृश्य बनी बैठी है तू जान,
ना तोड़े दिल तेरा कोई, इस लिए छुपकर बैठी है तू जान।
ज़रा दे तू अपना दिल प्रभु को, ओ मेरी जान,
फिर सुकून मेहसूस कर उसके प्यार का, मेरी जान।
संभालेगा वो तूझे, उसकी जान से ज्यादा, ओ मेरी जान,
मुहब्बत कर ले तू उससे, ओ मेरी जान।
फिर प्रभु के खुले आसमान में उड़ेगी तू ऊपर, मेरी जान,
जियेगी तू फिर सिर्फ प्रभु के लिए, ओ मेरी जान।
फिर संभलकर रहेगी तू प्रभु के लिए, ओ मेरी छोटी सी जान।
- डॉ. हीरा