लाचार थे हम के न खुले आम कुछ कह सके,
कि हाले दिल अपना न हम बयान कर सके।
शब्दों की इस हेरा फेरी में हम न कुछ बोल सके,
कि होंठ सिल गए और हम न कुछ समझ सके।
पर आँखों ने वह कहा जो हम न सुना सके,
दिल का हाल लबों पर हम न ला सके।
झूमती इन अँखियों में एक गीत हम बना सके,
कि नाचे मोरनी, वो संगीत वो बयान कर सके।
सावन बरसते रिम झिम का आवहान वो कर सके,
ऐसा अनमोल प्रेम का मेघ धनुष ये नैन कर सके।
- डॉ. हीरा