ख्व्वाहिशों के मेले में एक ख्व्वाहिश यह भी है, तुझे पाने की।
जीवन के इस झमेले में प्रश्न उठता है, कैसे?
ज्ञान के मार्ग में अहंकार कुछ आ जाता है ऐसे;
कि प्रेम मे भी झिझक आ जाती है, कुछ ऐसे;
होश उड़ जाता है, चलते इस राह पे कुछ ऐसे;
कि क्या पाने निकले, क्या हो गया, हो गए ऐसे के तैसे।
परम शांति में मुलाकात हो गई खुद से;
कि कर्म के बीज से कुछ पसीने छूट गए, हो गए ऐसे के तैसे।
दीवानगी में खामोश हो गए, इश्क के नाम पे ऐसे;
कि तेरे दीदार में बदनाम हो गए, अब तू जाने उससे निकले कैसे।
दो राही नहीं, बस चलना है तेरी ओर, खो जाए हम यूँ ही ऐसे।
- डॉ. हीरा