कहना चाहते थे तुमसे बहुत कुछ, पर कुछ न कह सके हम।
न बोले तुम कुछ, न फ़रियाद की कुछ, पर न कह सके हम।
बस आँखों से ही तीर चलाया ऐसा कि, न कुछ कह सके हम।
चोट तेरे दिल पे हमने लगाई गहरी, कि कुछ न कह सके हम।
मूर्त बन बैठे हो तुम, कि कुछ न कह सके हम।
प्यार से बुलाया तुमने फिर भी सब कुछ होके, कि कुछ न कह सके हम।
धायल इस दिल की दास्ताँन न दिखाई, कि कुछ न कह सके हम ।
साथी तुम मेरे हो फिर भी, कि कुछ न कह सके हम।
अब और नहीं रुला सकते हैं हम, कि कुछ न कह सके हम।
दूर बैठके, पास हो मेरे, न दे कभी कुछ गम, कि कुछ न कह सके हम।
- डॉ. हीरा