जाग रहा है इन्सान पर न जाने क्या कर रहा है इन्सान,
खुशी ढूँढ रहा इन्सान पर गम के अंधेरों में खो रहा इन्सान।
मुसिबतों को झेल रहा इन्सान पर जिन्दगी से हार गया इन्सान,
क्या कहे सिर्फ इतना कि नाकामयाब हो गया तू इन्सान।
संतान है जिस प्रभु का, खो दिया तूने उसे रे इन्सान,
अब भटक रहा है इस जग में लावारिस बनके तू इन्सान।
तोड दिया तूने जिस जहां पे खुशी के रिश्तो ऐ इन्सान,
अब दुख के साया में तू भटक रहा है इन्सान।
होश संभाल के आ, दर पर प्रभु खड़े हैं तेरे, ऐ इन्सान,
जहां मिल जाऐगा तुझे जो प्रभु मिल जाएँगे तुझे ऐ इन्सान।
- डॉ. हीरा