छुपा के अपने आप को, राह देखकर आंगन में बैठे थे आप,
ही तरसी हुई ऩजरों में आँसू समा रहे थे आप।
थकती नहीं थी ये ऩजर कि ढूँढ रहे थे अपने यार को आप,
पल आएगा ज़रूर जब मिलन होगा तुम्हारा और उनका आज।
झुकी हुई इन नैंनो में प्यार का बुलावा दिख रहा था आज,
कि यार मेरा सिमट लेगा मुझे अपने बाहों में आज।
आँख बंद किए, मिलन का पल महसूस कर रहे थे आप,
कि दबे पाँव दौड़ा आया है तेरा प्रभु तेरे पास।
लेकिन खो गए थे आप उनमें इतने, भूल गए आप,
कि प्राण भी खो गए, उनसे हमेशा मिल गए आप।
- डॉ. हीरा