चाहते हैं हम तुझे कितना, वो हम नहीं जानते।
चाहते हैं तुझे कितने रूप में, वो हम नहीं जानते।
दोस्त बनकर साथ साथ चले, ये कब हुआ वो हम नहीं जानते।
माँ बनकर हमारा हर दम खयाल रखा, ये कब हुआ…
पिता बनकर सही राह दिखाई, ये कब हुआ…
बहन बनकर हमारे दिल की बातों को सुना, ये कब हुआ…
भाई बनकर हमारी रक्षा की, ये कब हुआ…
सखी बनकर हमारा हाथ पकड़ा, ये कब हुआ…
गुरु बनकर हमारे जीवन की डोर पकड़ी, ये कब हुआ…
तेरे इन अनमोल रूपों में चाहते हैं हम तुझे कितना, वो हम नहीं जानते।
- डॉ. हीरा