भूमि पर आकर बहुत कुछ सिखा पर प्यार करना नहीं सिखा।
विश्व में आकर बहुत कुछ जाना पर खुद को न जान पाए।
जीतेजी बहुत कुछ कमाया पर आज़ादी न कमा पाए।
मान सम्मान के पीछे ऐसे भागे के मन के गुलाम बन गए।
हाले दिल में ऐसे खो गए के बंधनों में और बंधते गए।
सुख दुःख के चक्कर में ऐसे फसें के हाल अपना न संभल पाए।
खुद के अंदर न जा पाए के अपने आप को न पहचान पाए।
जमीन आसमान को एक करना चाहा दलदल में और फिसलते रहे।
अपनी ही सोच में मरते रहे और अपने ही व्यवहार में उलझते रहे।
करना चाहते थे क्या और क्या कर गए आखिर अपने ही जाल मे फँसते रहे।
- डॉ. हीरा