तेरे प्यार का दिदार चाहिए, तेरे प्रेम में एकरुपता चाहिए।
तेरी चाहत में और सब चाहत भूलकर, तेरे में एक होना चाहते हैं।
यह मैं के भाव को भूलाकर, इस शरीर भाव से उपर उठना चाहते है।
चाहतों के उस मेले से निकलकर, तुममें समा जाना चाहते हैं।
न और कोई चाहत बची, बस तुझको पा लेना चाहते हैं।
तुम और मैं के भाव से उपर उठकर, तुझमे में मैं को खोना चाहते हैं।
यह दिल की तड़प को अब तुझमें ही शांत करना चाहते हैं।
भावों और ख्वाईशों से निकलकर, तुझमे सम होना चाहते हैं।
यह अलगता आब तोडकर, एक होना चाहते हैं एक होना चाहते हैं।
- डॉ. हीरा