अंधकार से उजाले तक
प्रेम से आऩंद तक
प्रज्वलित किए आपने ये द्रीप।
ज्ञान से विश्वास तक,
साकार से निराकार तक,
प्रकाशित किए आपने ये गीत।
द्रितीय से मिलन तक,
अलगता से एकरूपता तक,
जीवन में सजाए आपने अंतर में द्रीप।
बलिदान से आर्शिवाद तक,
कर्म से अकर्ता तक,
आपने बिछाए राह में उजालों के द्रीप।
धर्म से आत्मा तक,
चेतना से परम चेतना तक,
आपने दिए समझ के वह बीज।
चेष्ठा से निष्ठा तक,
माँग से स्वाभिमान तक,
आपने दिए परमानंद का अमर जीत।
खामोशी से शातिं तक,
अतंरमुखी, अंतरध्यान तक,
आपने खिलाए ये मिलन के पुष्प।
दुनिया से कैलाश तक.
याद से हर पल तक.
आपने मिलाऐ सरगम के सुर।
जीवन की बुलंदी तक,
विजय से अजय तक,
आपने दिए खुशीयों और आनंद के द्रीप,
इसमें ही मिली हमें प्रीत की जीत।
- डॉ. हीरा