भावों के समुंदर में तैर रहे थे हम,
कि हर उछलते लेहेर पे डुब रहे थे हम।
न कोई किनारा हासिल कर सके थे हम,
अपनी ही गहराई में डूब रहे थे हम।
मौज पे म़ौज में बह रहे थे हम,
कि खुद को ही न संभाल सके थे हम।
इस प्रवाह के ज़ोर में खोते जा रहे थे हम।
प्यार का एक सहारा जब मिल गया हमें,
एक किनारा मिल गया था तब हमें।
प्यार भरे भाव में तब डूब गए रे हम।
- डॉ. हीरा