आराम हराम है, प्रेम ही तो गवाह है।
कोशिश सब नाकामयाब है, जुनून ही परेशान है।
ग़ालिब की शायरी है, फिर भी माहौल बेजान है।
इम्तेहान दिलों की गुप्त ही सही, मिलन का ही नशा है।
सीमित पहचान में राज छुपे, वो पहचान ही तो गुलाम है।
अँधेरों में वो उजाला कहाँ, जब दिल में वो न बसा है।
खातिम खुदा की रुखसत कहाँ, जब मन में खुदा ही आरजू है।
जीवन के ये राज ही सही, असल में उस परवरदिगार को पाना है।
गैरों में खुद को ढूँढना, वही तो अंतर की यात्रा है।
- डॉ. हीरा