अलग हैं अब तक हम, बड़े शर्म की बात है,
कि एक दूसरे से हम अंजान हैं, बड़े शर्म की बात है।
मंजिल हो तुम, वो जानकर भी अंजान है, बड़े शर्म...
कि हर खुशी है तुझमें, पर ढूँढे उसे जग में, बड़े शर्म...
प्यार तेरा मिले फिर भी अकेले रहे, बड़े शर्म...
कि गले तेरे मिले, फिर भी न चैन से जी सके, बड़े शर्म...
बीते इतने साल, पर न मंजिल को पा सके, बड़े शर्म...
कि वो आग, वो जुनून में न मिल सके, बड़े शर्म...
जज़्बात इतने कच्चे कि क्या चाहिए वो न जान सके, बड़े शर्म...
कि ये लिखने के लिए हमे मौका मिले, बड़े शर्म...
- डॉ. हीरा