पीर फकीरों में माने गए,
गुरु नानक तिब्बत में लामा भी जाने गए।
न कोई धर्म था उनका, न कोई मजहब,
बस ख़ुदा की बंदगी में, वो थे एक इन्सान।
उदासी उदासी वो करते रहे,
खुदा का नाम वो रोशन करते रहे।
न सिखाई उन्होंने कोई भक्ति,
न करवाई उन्होंने कोई धार्मिक प्रथा,
करवाई तो उन्होंने सिर्फ एक सांसारिक सच की सीख,
कि खुदा या भगवान, वो तो है सिर्फ एक निराकार स्वरूप।
- डॉ. हीरा