मिला हमें फल अपने कर्मो का, अब बोल तू कैसे सुधरेगा?
रिश्वत लेगा तू कितनी, हमारा काम करने को?
मंदिर में जाके कितनी मन्नतें है मानना?
और नारियल है कितने तुझे चढ़ाना?
फिर भी तू बैठा है चुप, क्यों हमें है सताता?
न समझ सके तेरी ख़ामोशी, ये तो सिर्फ है तेरा बहाना।
कि आखिर चाहता है तू कितना, बता चाहिए इतना।
कोशिश जरुर करेंगे तुझे अपनी जाल में फाँसना,
पर प्यार के तीर हम पे तू चलाता और हमें है फाँसता।
कि आखिर प्यार से हमें है तु बाँधता और फिर है जिताता।
- डॉ. हीरा