जीते जब हम अपनी शान में, खोते हैं हम अपनी भान रे,
स्वाभिमान चाहते हैं हम हममें, पर अहम् में खोते अपनी भान रे।
प्यार जग में करते हम शान से, पर तोड़ते हैं दिल, भूलकर अपनी भान रे,
गुरुर है हमें अपने आप पे, पर टूटते हैं हम जब खोते अपनी भान रे।
चाहते हैं प्यार हमारे नाम पे, पर खुद को ही प्यार करते हम शान से,
फिर क्या प्यार, क्या खुदा जग में, जब खुद को मानते खुदा, अपने भान में।
वाह वाह के नशे में डूबते हम जहान में, अपने आप को अमर कहते हम खोके अपनी भान रे,
सही मार्ग चाहते हैं हम जग में, तब जाके खोते हम तुझमें प्रभु अपनी भान रे।
बस फिर प्यार ही प्यार करते हम जहान में, अपनी भान भूल तुझमें खोते हैं अपनी जान रे।
- डॉ. हीरा