वक्त ने आरजू की है, हमारी इबादत ने शायरी की है,
महफिल में आए हैं आप, हमारे नाम की रोशनी की है।
खलिफों में नाम लिखा है, गुले गुल का ऐलान किया है।
खुदा को हुकुमत का ऐलान किया है, खुदा का नाम जवान किया है।
रूह हमारी भूल जाते हैं हम, खुदा के घर पर जब पहुँचते हैं हम,
हमारी दिवानगी का नाम हुआ है, हमें हर राह पर जाम मिला है।
रुखसत सारे गमों को किया है, प्यार का पैगाम दिया है,
अल्लाह पर दिल कुरबान हुआ है, अल्लाह के नाम की चर्चा किया है।
न हिंदू, न मुसलमान, खुदा को याद किया है, यहाँ भी खुदा को लोगों में बसाया है।
फितूर नहीं नाम पाने की, अपने आप को अल्लाह की राह में कुरबान किया है।
- कई संतों की अंतर्दृष्टि जिसे कि “परा” द्वारा प्रकट किया गया है।