मंजिल है हमारे सामने, और रास्ता है अंजान।
कुछ परछाइयाँ मिले पथ पे, फिर भी हम है अंजान।
इस अंजान सफर में हम हैं चले, नहीं मालुम उसकी दूरी।
मालूम होता अगर, तो मालूम नहीं कि जीते हम जिंदगी पूरी।
पर पल पल तस्वीर हमें है मिली, कि कहाँ तक पहुँचे हैं हम।
इतनी दूर चले आए, ये सोचकर खुशी मनाते थे हम।
पर आगे कितना है जाना नहीं जानते थे हम।
पाई हुई कामयाबी के बल पे आगे चलते रहे थे हम।
कभी अंजान रहना भी अच्छा, कभी जानना भी है अच्छा।
पर जो भी करता है खुदा, वो सब करता ही है अच्छा।
- डॉ. हीरा